कुछ यादें गुज़रे हुए पलों की .......

Thursday 23 May 2013

एक शिकायत है तुमसे

आज एक टूटी सी कलम मिली बस्ते में,
ये शायद वही है,
जिससे हम साथ लिखा करते थे,
मेरी कविता के नीचे अपना नाम भी,
तुमने इसी से लिखा था शायद,
तुम्हारे बिना कुछ उदास सी है आज,
कहो तो वो कलम भिजवा दूँ ......

क्या इतनी व्यस्त हो गयी हो तुम,
अब तो दुपहरी का बहाना भी बनाने लगी हो,
मेरी हंसाने की अदा की तो तुम कायल थी,
उसी का क़र्ज़ उतार दिया होता,
एक ख़त में अपनी हंसी भिजवा दी होती,
अभी भी फुर्सत के दो पल पड़े हैं मेरे पास,
कहो तो वो पल भिजवा दूँ .......

साथ बैठकर देखे वो सपने तो नहीं भूलीं न तुम,
बाल अभी भी खुले रखती हो या चोटी बाँध ली है,
एक रुपया उधार है तुम्हारा मुझ पे,
लौटने के बहाने मिलेगा किसी रोज़ 'स्पर्श',
मेरा दिया दुपट्टा ओढ़ के आना,
फिलहाल तो कुछ यादें ही अब शेष हैं मेरे पास,
कहो तो वो यादें भिजवा दूँ .........!!!

                                                             - दिवांशु गोयल 'स्पर्श'

Sunday 12 May 2013

माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे







उस पीतल की थाली में,
रखे हुए कुछ,
चावल के दानों को,
बीनने की कोशिश करता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।

धो के, करीने से इस्त्री की हुई,
मेरे स्कूल की सफ़ेद शर्ट,
और आठवीं क्लास की सर्दियों में,
तुम्हारे बनाये उस स्वेटर को,
आज भी सोचता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।

तुम्हारे साथ रसोई में,
रोटियाँ बेलने की जिद और,
मेरे माथे पे तेरे कोमल हाथों का 'स्पर्श'
आज भी सोचता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।

                                 -दिवांशु गोयल 'स्पर्श'